अनुक्रमणिका
| १ | वैदिक संस्कार | श्री अप्रबुद्ध | २-८ |
| २ | बुद्धिवाद व शब्दप्रामाण्य | श्री अप्रबुद्ध | ९-१४ |
| ३ | अता मिळाले मज माझे घर ! (कविता) | प्रा. वसंत वर्हाडपांडे | १५-१६ |
| ४ | भारतीय वाङ्मयाचे अर्वाचीन टीकाकार | प्रा. नारायणशास्त्री द्रविड | १७-२१ |
| ५ | वैफल्यवाद | प्रा. वि.शी.शेणवाई | २२-२७ |
| ६ | प्रज्ञालोक ची अतीव आवश्यकता कां? | प्रा.दि.के.बेडेकर | २८-० |
| ७ | शंका समाधान | तत्वदर्शी | ३१-३७ |
| ८ | सहज सुटणारे कोडे !! | सौ. मालती फडणवीस | ३८-४२ |
| ९ | विज्ञानवाधांचे अज्ञान | प्रा. भा. ह. मुंजे | ४३-४७ |
| १० | अप्रिय पण पथ्य | – | ४८-५० |
| ११ | बालगुन्हेगारी | ले. वंचित | ५१-५८ |
| १२ | राम – झरोक्या’ तुन | आत्र्जनेय | ५९-६३ |




