अनुक्रमणिका
१ | उपासना म्हणजे समान-प्रत्यय प्रवाहकरणम‘ | अप्रबुद्ध | १९३ |
२ | संपादकीय | एका जनार्दनी गति आम्हा । तेची झाली पौर्णिमा | १९४ |
३ | पू. अप्रबुद्धांच्या कविता | १९८ | |
४ | धर्मशास्त्र | अप्रबुद्ध | १९९ |
५ | प्रज्ञालोक व ब्राह्मण – एक राष्ट्रीय प्रश्न | म.म. बाळशास्त्री हरदास | २०३ |
६ | श्रद्धा आणि बुद्धिवाद – | आचार्य के. रा. जोशी | २०९ |
७ | ज्ञानाचा स्फोट आणि सुखाचा शोध | डॉ. स. मो. अयाचित | २१६ |
८ | आधुनिक विज्ञान आणि ज्योतिषशास्त्र | डॉ. भा. वि. देशकर | २१८ |
९ | विट्ट – विट्ठल (शके ४४८) – | प्रा. म. रा. जोशी | २२१ |
१० | कुशलव आणि कुशीलवा : – | प्रा. म. रा जोशी | २२२ |
११ | स्वदेशी न्यायदान पद्धती | अधिवक्ता यशवंत बा. फडणीस | २२५ |
१२ | गंगास्तोत्रम | श्री. प. प. वासुदेवानन्द सरस्वती | २२६ |
१३ | धर्म व राजकारण | सौ. शैला जोशी | २३१ |
१४ | सामान्यातील असामान्य भक्तिवैभव | बा. रा. पाध्ये | २३५ |
१५ | शास्त्रज्ञ तत्त्वज्ञ आणि सर्वज्ञ – | श्रीवत्स | २३७ |
१६ | पुनर्नवा – | वैद्य जयंत यशवंत देवपुजारी | २४४ |
१७ | वैदिक कालविधानशास्त्र – फलज्योतिष सिद्धांतांची नाडीपरीक्षा | २४६ | |
१८ | प्रतिक्रिया | २५१ | |
१९ | पुस्तक परीक्षण | ||
१) भक्तीची वाट दाखवणारी चैतन्यचिंतने | श्यामकांत कुळकर्णी | २५५ | |
(२) मुक्तवेध | वा. गो. चोरघडे | २५७ | |
२० | पत्रव्यवहार |