अनुक्रमणिका
| १ | संपादकीय | २ | |
| २ | प. पू. अप्रबुद्धांच्या कविता | ६ | |
| ३ | विस्मृतीत गेलेली इतिहासाची काही पाने | श्री.श.हळदे | ८ |
| ४ | १८५७ झांशीची राणी आणि नानासाहेब पेशवे | प्रा.म.शं.वाबगांवकर | १३ |
| ५ | सत्तावननंतरची सत्तेची सापशिडी | दादुमिया | २१ |
| ६ | १८५७ चे स्वातंत्र समर व संत सत्पुरूष | प्रा. म.रा.जोशी | ३२ |
| ७ | वाचकांचे सहाय्य | अॅड.वि.शं.गोखले | ३६ |
| ८ | श्री आद्य शंकराचार्य | डॉ.भा.वि.देशकर | ३९ |
| ९ | व्दितीय पण अव्दितीय | श्री.दा.गो.पाटणे | ४३ |
| १० | विकास ? | श्री.श्री.पु.शुक्ल | ४८ |
| ११ | परम् वैभवाप्रती…. | भा.वि.रानडे | ५० |
| ११ | ताण -तणावाचे निर्मूलनासाठी योगसाधना व ध्यान | अॅड.यशवंत बा.फडणीस | ५८ |
| १२ | प्रतिक्रिया | ६४ | |
| १३ | पुस्तक परीक्षण | ६७ |




