अनुक्रमणिका
१ | चार वेद, चार वर्ण, चार आश्रम | २३१ | |
२ | नाबाद २००! – संपादकीय | २३४ | |
३ | प. पू. अप्रबुद्धांच्या कविता | २४२ | |
४ | वेद, चातुर्वर्ण्य व ब्राम्हण | प्रा.म.शं.वाबगांवकर | २४४ |
५ | वेदांतील आणि विज्ञानातील विश्वउत्पत्ती विचार | डॉ.भा.वि.देशकर | २४९ |
६ | मार्तंड जे तापहीन | आचार्य सुधाकर देशपांडे | २५४ |
७ | श्रीभगवद्गीता आणि विश्वरूप दर्शन | आचार्या सौ.शोभा बुचे | २५८ |
८ | शास्त्रज्ञ, तत्त्वज्ञ आणि सर्वज्ञ | श्रीवत्स | २६२ |
९ | जिहाद’ नव्हे स्वातंत्रयसमर | आचार्य सुधाकर देशपांडे | २६९ |
१० | समन्वयमहर्षि श्री गुलाबराव महाराज आणि सामाजिक समरसता | आचार्य सौ.अलका इंदापवार | २७४ |
११ | तत्त्वज्ञान आणि सामाजिक समरसता | प्रा.र.ग.दांडेकर | २८१ |
१२ | चरित्र कादंबरी आणि आत्मचरित्रात्मक कादंबरी | प्रा.आचार्य जयश्री प्रकाश शास्त्री | २८६ |
१३ | पुस्तक परीचय : खुपेरकर शास्त्री | श्री.मा. कुलकर्णी | २९४ |
१४ | पत्रव्यवहार | ३०० | |
१५ | श्रीगुरूचरित्र व समाजदर्शन | श्रीश म. हळदे | ३०२ |
१६ | ब्रह्मर्षि अण्णासाहेब पटवर्धन यांच्या दोन आठवणी | प्रा.ना.कृ.भिडे | ३०३ |