अनुक्रमणिका
| १ | प्रज्ञालोक -सुविचार | अमर्त्य सेन | १७१ |
| २ | दोन शब्द कृतज्ञतेचे | पू.फाटेस्वामी | १७२ |
| ३ | संपादकीयःस्वाध्याय -शक्तीचे जागरण | (सं) | १७४ |
| ४ | कल्पतरूंची फुले : सखोल,सधन,मूलग्राही पण दिशा हरवलेले चिंतन | प्रा.मा.गो.वैद्य | १८० |
| ५ | मानवाधिकार आणि त्यांचे उल्लंघन (उत्तरार्ध) | अॅड.हर्षवर्धन निमखेडकर | १९० |
| ६ | राजकन्या आयरिन यांचा अव्दैताकडे ओढा | सौ.विद्या प्रशांत बोकारे | १९८ |
| ७ | स्नान मज घडले सिंधुचे (कविता) | प.पू.श्री.वरदानन्द भारती | १९९ |
| ८ | श्री अप्रबुध्द : एक आठवण | श्री. म.मा.कुळकर्णी | २०१ |
| ९ | अमर्त्यसेन – गौरव | डॉ.गु.वा.पिंपळापूरे | २०३ |
| १० | सरस्वती | – | २०७ |
| ११ | वाचे बरवे वाचकत्व | संपादकीय | २०८ |
| १२ | व्यासादिकांची उशिटे | संपादकीय | २१३ |
| १३ | संवाद | संपादकीय | २१५ |
| १४ | भा.धा.समितीचा गौरव (प्रतिवृत्त) | – | २२१ |
| १५ | दासगणू महाराज : एक टिपण | श्रीश हळदे | २२३ |




