अनुक्रमणिका
| रोमा रोलॉ भारतीय समाजरचनेविषयी म्हणतात – | २०१ | |
| पंचकन्या : सीता ! | बाळ पाईक | २०२ |
| मध्यपूर्व व प्राचीन भारत : सांस्कृतिक संबंध | प्रा.शंकर गजानन सहस्त्रभोजने | २१६ |
| अप्रिय पण पथ्य | वसंत पळशीकर | २२६ |
| ज्ञान, विज्ञान व अज्ञान | न.ना.भिडे | २२९ |
| ’प्रज्ञालोक’ वाचुन | रजनी नवले | २३१ |
| संवाद : राजकारणाची वारवनिता : धर्म | डॉ.ब.स.येरकुंटवार | २३४ |
| प्रकाशन समारंभ वृन्तान्त मी पाहिलेले अप्रबुध्द | डॉ.त्र्यं.गो.पंडे | २५४ |




